मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 एक परिचय
Blogs1. क्या है मानवाधिकार –
प्रत्येक व्यक्ति को जन्म के साथ कुछ नैसर्गिक अधिकार प्राप्त हो जाते हैं, जिनसे किसी भी परिस्थिति में उसे वंचित नहीं किया जा सकता है। मानवीय गरिमा के साथ जीवन यापन एवं अपना विकास करने के लिए आवश्यक इन अधिकारों को मानवाधिकार कहा जाता है। इसके अंतर्गत नागरिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार भी आ जाते हैं।
अर्थात जो प्रकृति द्वारा जन्म से मानव को प्रदान किया जाता है, उसका संरक्षण करने का दायित्व उस राज्य (राष्ट्र) की सरकार या शासन का होता है। इसी क्रम में सरकार नागरिकों को मुफ्त आवास, खाद्य सामग्री, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वतंत्रता, गरिमापूर्ण जीवन आदि प्रदान करने के लिए बाध्य है।
मानवाधिकारों के संरक्षण का दायित्व उस देश की सरकार का होता है। मानवाधिकार को सम्पूर्ण विश्व में मान्यता प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने 10 दिसंबर 1948 को मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा की एवं समस्त देशों को अपना मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम स्थापित करने के लिए कहा। इसी लिए 10 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
2. मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 एक परिचय –
A. संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के दिशा-निर्देशों के पालन में भारत में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 28 सितम्बर 1993 को केंद्र सरकार द्वारा लागू किया गया एवं राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर 08 जनवरी 1994 को किए गए।
B. इसी अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल कल्याण आयोग, राष्ट्रीय दिव्यांग कल्याण आयोग, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की गई है।
C. 2006 एवं 2019 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया है एवं इसी अधिनियम के तहत 2019 में राष्ट्रीय बाल कल्याण आयोग, राष्ट्रीय दिव्यांग कल्याण आयोग, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन भी किया गया।
D. इस अधिनियम में 08 अध्याय एवं 43 धाराएं हैं।
E. इस अधिनियम के अनुसार राष्ट्रपति आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति करेंगे।
F. इस अधिनियम के अनुसार राष्ट्रपति समय से पूर्व आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों को हटा सकते हैं, परंतु उच्चतम न्यायालय से जांच करवाना अनिवार्य होता है।
G. सदस्यों की पदावधि – कार्यकाल के 03 वर्ष या उम्र के 70 वर्ष जो पहले पूर्ण हो जाए।
H. उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष बनने के लिए पात्र होते हैं।
I. अधिनियम के अध्याय 05 में राज्य मानवाधिकार आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है।
J. अधिनियम के अंतर्गत ही लोक अभियोजक (पब्लिक प्रोसिक्यूटर) की नियुक्ति का प्रावधान है।
K. अधिनियम के अनुसार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को अनुदान केंद्र सरकार देगी, उसी तरह राज्य मानवाधिकार आयोग को अनुदान राज्य सरकार देगी।
L. अधिनियम के अनुसार आयोग किसी ऐसे मामले की जांच नहीं करेगा जिसकी जांच पहले से कोई अन्य आयोग कर रहा है एवं आयोग घटना दिनांक से एक वर्ष से अधिक पुरानी शिकायत पर जांच नहीं करेगा।
3. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अध्यक्ष एवं सदस्यों का परिचय –
- इसमें 01 अध्यक्ष और 12 सदस्य होते हैं, इस तरीके से कुल 13 सदस्य होते हैं जो इस प्रकार हैं –
A. अध्यक्ष – उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
B. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (कार्यरत)
C. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (कार्यरत)
D. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष
E. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष
F. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष
G. राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष
H. राष्ट्रीय बाल कल्याण संरक्षण आयोग के अध्यक्ष
I. राष्ट्रीय दिव्यांग कल्याण आयोग के अध्यक्ष
J. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष
K. 3 ऐसे विद्वान व्यक्ति जो मानवाधिकार संबंधित मामलों के विशेषज्ञ हों, जिसमें एक महिला हो
4. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का परिचय –
यह एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है। इसकी स्थापना मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत 12 अक्तूबर 1993 को की गई थी। इसका मुख्य कार्यालय भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्थित है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मानवाधिकारों का संरक्षक माना जाता है।
5. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के कार्य एवं शक्तियां –
A. सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों में मानवाधिकारों के संबंध में निगरानी रखना।
B. मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए शिविर / सेमिनार / सम्मेलन का आयोजन करना।
C. मानवाधिकारों के संबंध में कार्यरत संस्थाओं को बढ़ावा देना।
D. मानवाधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना तथा उन्हें छात्रवृत्ति उपलब्ध कराना।
E. भारत में स्थित किसी भी जेल का निरीक्षण करना।
F. आयोग स्वप्रेरणा से या शिकायत प्राप्ति के बाद संज्ञान लेगा या कार्य करेगा।
G. आयोग को सिविल कोर्ट (दीवानी न्यायालय) की शक्तियां प्राप्त हैं।
H. CPC 1908 (सिविल प्रोसीजर कोड) के तहत समन जारी करने का अधिकार होता है।
I. आयोग जांच उपरांत पक्षपातपूर्ण व गलत तरीके से की गई कार्यवाही को रद्द कर सकता है।
J. मानवाधिकार उल्लंघन या लोक सेवक द्वारा उपेक्षित व्यक्ति को मुआवजा देने और लोक सेवक पर कार्यवाही करने के लिए सरकार से कह सकता है।
K. आयोग की कार्यवाही पर जवाब देने के लिए सरकार बाध्य होती है।
L. आयोग न्यायालय से भी कार्यवाही के लिए अनुरोध कर सकता है।
M. सशस्त्र बलों द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघन की जांच मानवाधिकार आयोग कर सकता है।
N. शपथपत्र पर गवाही लेने एवं गवाही के ऑडियो, वीडियो रिकॉर्डिंग का अधिकार होता है।
O. आयोग संबंधित कार्यालय की तलाशी ले सकता है तथा आवश्यक दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के लिए कह सकता है।
P. दोषी या आरोपी अधिकारी का स्थानांतरण कर सकता है।
Q. आयोग दोषी अधिकारी को सजा देने के लिए या निलंबन के लिए संबंधित विभाग से कह सकता है, स्वयं आयोग को सजा देने या निलंबित करने का अधिकार नहीं होता है।
R. आयोग अपने निर्देशों के पालन के लिए उच्चतम न्यायालय से रिट (Writ) जारी करने के लिए अनुशंसा कर सकता है।
S. आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन (रिपोर्ट) राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, जिसे राष्ट्रपति भारतीय संसद में प्रस्तुत करवाते हैं एवं उस पर विचार किया जाता है।
6. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को शिकायत के माध्यम –
A. आवेदक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वेबसाइट https://nhrc.nic.in/ पर विजिट कर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। यह शिकायत का सबसे आसान और पारदर्शी माध्यम है जहाँ आवेदक समय-समय पर अपनी शिकायत की स्थिति भी जान सकते हैं।
B. आवेदक शिकायती आवेदन पत्र जिसमें आवेदक और आरोपी का नाम, पता स्पष्ट हो मय साक्ष्य, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को ईमेल के माध्यम से भेज सकते हैं।
C. आवेदक शिकायती आवेदन पत्र जिसमें आवेदक और आरोपी का नाम, पता स्पष्ट हो मय साक्ष्य, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग “पता – राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, मानव अधिकार भवन, ब्लॉक-सी, जी.पी.ओ. कॉम्प्लेक्स, आई.एन.ए., नई दिल्ली – 110023” पर पोस्ट द्वारा भेज सकते हैं।
7. शिकायत प्राप्ति के बाद आयोग की कार्यवाही –
शिकायत प्राप्ति के बाद आयोग, जिला कलेक्टर या जिला पुलिस अधीक्षक को जांच के आदेश जारी करता है या स्वयं भी समन जारी कर संज्ञान लेता है। प्रकरण की प्रकृति सूक्ष्म या सुनवाई योग्य नहीं होने पर आयोग शिकायत को रद्द भी कर सकता है, यह आयोग के विवेक पर निर्भर करता है।
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