उपभोक्ता फोरम: एक परिचय
Blogs1. परिचय:
उपभोक्ता फोरम भी एक प्रकार की अदालत है और इसे कानून द्वारा सिविल कोर्ट के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं। उपभोक्ता अदालतों की नींव उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के साथ रखी गई। इस अधिनियम के लागू होने से पहले भारत में उपभोक्ताओं के लिए ऐसा कोई विशेष कानून नहीं था जो केवल ग्राहकों से जुड़े मामलों का समाधान करता हो। किसी उपभोक्ता के ठगे जाने की स्थिति में उसे सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर करना पड़ता था। चूंकि सिविल कोर्ट पर पहले से ही अत्यधिक कार्यभार होता है, इसलिए उपभोक्ताओं को न्याय प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर करने के लिए कोर्ट फीस भी देनी होती थी। इस प्रकार उपभोक्ताओं को दोहरी मार झेलनी पड़ती थी — एक तो ठगी और दूसरी न्याय पाने के लिए खर्च। इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 बनाया गया जिसे अंग्रेज़ी में Consumer Protection Act, 1986 कहा जाता है। वर्ष 2019 में इस अधिनियम में कई संशोधन किए गए, जिससे इसे और अधिक प्रभावी व उपभोक्ता हितैषी बना दिया गया।
2. यह अधिनियम उपभोक्ताओं को निम्नलिखित अधिकार प्रदान करता है:
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वस्तुओं या सेवाओं की मात्रा, गुणवत्ता, शुद्धता, क्षमता, कीमत और मानक के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार।
- खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षित रहने का अधिकार।
- अनुचित या प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं से संरक्षित रहने का अधिकार।
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प्रतिस्पर्धी कीमतों पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं या सेवाओं की उपलब्धता का अधिकार।
3. किस प्रकार के मामले लगाए जा सकते हैं:
उपभोक्ता, दुकानदार या सेवा प्रदाता के विरुद्ध शिकायत दर्ज कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि आपने कोई फ्रिज या कार खरीदी और उसमें खराबी निकलती है, तो आप दुकानदार के विरुद्ध मुकदमा दायर कर सकते हैं और उस कंपनी को भी पक्षकार बना सकते हैं जिसने उत्पाद बनाया है।
यह मुकदमा आप उसी शहर में दायर कर सकते हैं जहाँ आपने उत्पाद खरीदा है और जहाँ आप रहते हैं। इसके लिए कंपनी के शहर में जाने की आवश्यकता नहीं है।
4. 2019 के संशोधित कानून के अंतर्गत त्रिस्तरीय प्रणाली बनाई गई है:
a. जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (जिला आयोग)
b. राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (राज्य आयोग)
c. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (राष्ट्रीय आयोग)
हालाँकि इन्हें आयोग कहा गया है, ये परंपरागत अदालत नहीं हैं। यहाँ मुकदमा दायर करने से पहले शिकायत दर्ज कर प्राथमिक स्तर पर समाधान का प्रयास किया जाता है।
5. किसी पेशेवर के विरुद्ध भी मुकदमा दायर किया जा सकता है:
उपभोक्ता कानून के अंतर्गत किसी भी पेशेवर के विरुद्ध मुकदमा दायर किया जा सकता है जिसने पैसे लेकर सेवा प्रदान की हो, जैसे डॉक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट आदि।
वकीलों के मामले में पूर्व में संशय था क्योंकि वकालत को व्यवसायिक पेशा नहीं माना जाता और वकीलों को विज्ञापन देना भी वर्जित है। परंतु अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि वकील के द्वारा सेवा में कमी होने पर उसके विरुद्ध भी मुकदमा दायर किया जा सकता है।
6. सेवा प्रदाता कंपनियों के विरुद्ध मुकदमा:
टेलीकॉम, इंश्योरेंस, बैंक आदि क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियों के विरुद्ध उपभोक्ता फोरम में शिकायत की जा सकती है।
उदाहरण के लिए:
- यदि मोटर वाहन चोरी हो जाता है और इंश्योरेंस कंपनी क्लेम देने से मना करती है, तो फोरम में मुकदमा लगाया जा सकता है।
- हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी क्लेम देने से इनकार करे तो भी उपभोक्ता फोरम में केस दायर किया जा सकता है।
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बैंक यदि सेवा में कमी करता है, तब भी मुकदमा किया जा सकता है।
7. उपभोक्ता फोरम में नाममात्र की कोर्ट फीस होती है:
फोरम में न्याय सुलभ बनाने हेतु कोर्ट फीस बहुत कम रखी गई है:
- ₹5 लाख तक के दावे पर कोई कोर्ट फीस नहीं।
- ₹5 लाख से ₹10 लाख तक – ₹200
- ₹10 लाख से ₹20 लाख तक – ₹400
- ₹20 लाख से ₹50 लाख तक – ₹1,000
- ₹50 लाख से ₹1 करोड़ तक – ₹2,000
₹1 करोड़ तक के मामले जिला आयोग में ही सुने जाते हैं। इससे ऊपर के मामले राज्य आयोग में जाते हैं।
8. राज्य आयोग में कोर्ट फीस:
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₹1 करोड़ से ₹2 करोड़ तक – ₹2,500
- ₹2 करोड़ से ₹4 करोड़ तक – ₹3,000
- ₹4 करोड़ से ₹6 करोड़ तक – ₹4,000
- ₹6 करोड़ से ₹8 करोड़ तक – ₹5,000
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₹8 करोड़ से ₹10 करोड़ तक – ₹6,000
9. राष्ट्रीय आयोग की कोर्ट फीस:
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₹10 करोड़ से अधिक के दावों पर – ₹7,500
10. उपभोक्ता फोरम, सिविल कोर्ट से अलग होती है:
उपभोक्ता फोरम, सिविल कोर्ट से स्वतंत्र होती है। यह जिला न्यायाधीश के अधीन नहीं होती तथा इसके पीठासीन अधिकारी को “जज” या “मजिस्ट्रेट” नहीं बल्कि “अध्यक्ष” कहा जाता है।
हालाँकि, इन्हें सिविल कोर्ट के समान शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। इसका उद्देश्य यह है कि सिविल कोर्ट से अलग रहते हुए उपभोक्ताओं को शीघ्र एवं सस्ता न्याय मिल सके।
स्रोत – हिंदी लाइव लॉ
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